नाथ क्यों एतो कष्ट सहायो, वाको कारण मैं नहीं पायो॥

जीव ब्रह्म सम वेद बतावत, पाप पुण्य क्यों ल्यायो।

जो जीव ब्रह्म ही होतो, क्यों जंजाळ लगायो।

कंठ किसी को मैं नहीं काट्यो, ना कोई संत सतायो।

पर सुख देख दुःख नही मान्यो, पर धन खोस खायो।

सो पूरबला पाप कह्या छै, तुम नहीं न्याय चलायो।

बीं देही तो कर्म किया छा, ईनैं क्यूं भुगतायो।

जगत कहै हरि भगत तावै, मैं तोको कब गायो।

सोनो व्है तो भदै सवायो, तामो वृथा तपायो।

कहत ‘समान’ सह्यो हरि मैं तो, जो तुमने भुगतायो।

ऐसी भूल फेर मत कीज्यो, यह तो अकल ठगायो।

स्रोत
  • पोथी : साहित्य सुजस भाग-2 ,
  • सिरजक : समान बाई ,
  • संपादक : श्रीमती प्रकाश अमरावत ,
  • प्रकाशक : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर।
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