हेलो म्हारो सुणज्यो जी जगदीश,

जगतपति जग रखवाळा रै मुरली वाळा रै॥

प्रथम पूतना मारण कारण, कुच रै विष लपटायो रै।

उनको जसमत की गत दीनी, सुरग पठाई रै।

गज अर ग्राह लड़ै जळ भीतर, लड़त-लड़त गज हार्यो रै।

गज की बेर पयादेहि धाये, गरुड़ बिसार्यो रै।

खंभ फाड़ नरसिंग रूप धार्यो, हिरणाकुश रिपु मार्यो रै।

उनको सुत प्रहलाद उबार्यो, धूजी तार्यो रै।

मैं मति हीन कछु नहीं लायक, कौन भांति गुण गाऊं रै।

कहै ‘समान’ सुणो सांवरिया, शरण आऊं रै।

स्रोत
  • पोथी : साहित्य सुजस भाग-2 ,
  • सिरजक : समान बाई ,
  • संपादक : श्रीमती प्रकाश अमरावत ,
  • प्रकाशक : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर।
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