भाइ रे, भेद भरम कै पैलै पासै, सोचि बिचारौ दासा।

मनसा मेघ बरसि घट भीतरि, अरथि भीजै आसा॥

ताप तिमर दुख जाका तन मैं, सो सुख सिंघ जाणैं।

कूकर कीच बिषै कूं खूथौ, पाप पसी स्यूं छाणैं॥

फूटा बासण बेझ बिकारी, सुरि सब हूवा रीता।

राम कहण कूं रुळ्या बिगूचै, जड़ बुधि ज्वाला जीता॥

निरमल ग्यान चरण थैं नेड़ा, पैसि जको जळ पीवै।

कह हरदास त्रिखा तब भाजै, जन्म सुफळ व्है जीवै॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै