बाजीगर बाजी रची, माया विसतारा।

बाजी सूं बाजी रमै, बाजीगर न्यारा।

काम क्रोध अभिमान का, लै डेरूं माया।

जल थल जीव जहां तहां, बाजी भरमाया।

अहूं वास ममता चढ़ी, नव डोरी पसारी।

मोह ढोल वाजै सदा, नाचै नर नारी।

दुप सुप गोटा ऊछलै, माया मद पीया।

ब्रम्ह विष्न महेस लौं, बाजी बसि कीया।

मन चंचल निहचल भया, निरभै घरि आया।

जन हरीदास बाजी तज्यां, बाजीगर पाया॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की बाणी सटिप्पणी ,
  • सिरजक : हरिदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा, दादू महाविद्यालय, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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