अब तौ स्यांम सोवन दै, होत हैं पह पियरी।

यह सुगंध मंद पवन, लागत हैं सियरी।

द्रमनि कुंज-कुंजनि मैं, पंछी हू जागे।

हारन को मोती, तन सीतल कछु लागे।

करनि करखि कंचुकि कौं, सु नैंक बांधि दीजै।

देहु मेरो नील बसन, पीत बसन लीजै।

तुम तौ मगन स्वारथ रस, नैकहू अरसो।

काहे कौं कुंवर कंवल से दृग, पायन सौं परसौ।

बहुत प्रेम, थोरी निस, सुरझि सकत नाहीं।

‘नागरिया’ रंग बढ्यो, पातन की छाहीं॥

स्रोत
  • पोथी : नागरीदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : डॉ. किशोरीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ,
  • संस्करण : प्रथम
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