दूहा
विध सुता करूं वंदना, शारद नमावु सीस।
दान विदा गणपत दियो, अंबा सुत आसीस॥
ब्रहमा गंगाधर विसन, सदाय करण सहाय।
कृपा कर मम कुबुद्धि, पान विषधा रस पाय॥
सुभट भारत सज्जिया, करण आहब काज।
दल अरियां तणो दळण, रोळण किलांह राज॥
छंद - भुजंगी
सजे सिंध रै ऊपरे हिंद सूरा।
त्रबागळ्ळ भेरी बजै रण्ण तूरा॥
बई जोस नीसान त्रीघाइ बाजे।
भटां देखतां भूत शैतान भाजे॥
बजे डाक डंडा महावीर बाजा।
कियो कोप वीरान आरान काजा॥
जुधां काज वीरां विजू जोस छाया।
लिये हाथ तोपां तसां गेण लाया॥
सजी मोटरां आरमी सेस सारी।
तिही बेर तुर्कान पै कीन त्यारी॥
बळां पूर जोधार राठौड़ बंका।
अदीता मरेठा चढ़ै यूं असंका॥
सिखां गोरखां वीर चौहान साथै।
खड़े मोटरां जोर टंकाय खाथै॥
सचाला वडाला लकालाय सूरा।
पटाला झटाला हणे लाय पूरा॥
बखों रूप ज्वाला लखों वीर चाले।
हले छोड़ म्रजाद सामुद्र हाले॥
पवामान वीमान चाले अपारा।
सजे सैन तूफान जोवान सारा॥
अरां ऊपरां सैन चाली अपारां।
उडी रेण टेनां छकी अंधकारां॥
पहीठान साया पनज्जाय पूगा।
अकारीठ जोधार ज्यां सूर ऊगा॥
चक्रव्यूह चौगान यों जा रचाया।
जठै मोरचा जोर वीरों जचाया॥
असुरान पीठान देखै न आगी।
लखों हिंद जोधा चखों लाय लागी॥
अपारा दलां बादलां जेम आया।
थटा आमळा सामळा जुध्ध थाया॥
छंटे तोप गोळा मिळे व्योम छाया।
अछूताय रूठा इसी भांत आया॥
मिली आरमी आरमी फौज मांजी।
भटां झीक आयुध टेंकाय भाजी॥
अकारीठ जोधार जूझे अभंगा।
जुटे वीर कोधा बिहुं अेक जंगा॥
गनां तोप बावै छुटै सोर गूंजै।
धरा धूज रीमां गिरियंद धूजै॥
झली तोप वीरां धकै पाक झाड़ै।
परेठान नीसाण पायलोट पाड़ै॥
असुरान फोजान वे पार अैसी।
जमरान डेडान पीठान जैसी॥
दृष्ट पाक रा हिंद जोधार दोटे।
लगे घाव झीका कबू जेम लोटे॥
चहू ओर तीरां तणो सोर चालै।
मिलै हुर रंभा जुध बीच मालै॥
वळै पाक टेंकां तणी बंब ज्वाला।
पुगी पाक टेंकां तपी पाय पाला॥
पड़ै ज्यान पीठान को पार पावै।
जदां ज्यांन शैतान ले प्राण जावै।
शस्त्र छूट सूरां धड़ों यूं समावै।
जलाबोळ को बींध ज्यों सील जावै॥
फटे रूण्ड श्रोणीत चाले फवारा।
धरा ऊपरां मंडियो मेघ धारा॥
जुड़ै नाल बारूद चौफेर गाजै।
भयम्मान आसूर अन्नेक भाजै॥
धरां घाव फूटै चलै श्रोण धारा।
असी ढेर सूमेर जैसो अपारा॥
रणं बीच श्रोणित तालाब राच्यो।
मिलै मांस ग्राणीत यूं कीच माच्यो॥
सबै कोट जीत्या करै अेक साका।
ढळी सैन प्राची दिसा छोड़ ढाका॥
करैजीत आजाद बंगाल कीया।
पढै यूं कवि भांण भुजंगप्रिया॥
दूहा
यति गति अर दोष उकत, अवगुण होय अपार।
कर जोड़ै भंवर कहे, सुकवि लीजो सुधार॥