दूहा
रोगी व्रिध बालक रहे, प्रजा अंन संगि प्रखि।
हाहाकार पुकार हुव, रांम विजोग निरख्खि॥
प्रजा सहित वासुर प्रथंम, आथंमियां दुणियंद।
राघव नदि तंमसा रहे, चहुं कोसे रघुचंद॥
सूती परजा अरध निसि, रांम संजोये रथ्थ।
उत्तर पंथ खड़ी कोस इक, पेरे दक्खिंण पथ्थ॥
तमसा श्रीमती गोमती, सरजू वेद सुम्रित्ति।
पहुँचे नदि उलंघि पंच, श्रंग मेर श्री पत्ति॥
राजा गुह श्रंगमेर रौ, भणै भील कुळ भूप।
ग्रामि पधारौ रांम ग्रहि, अै आमास अनूप॥
गये न राघव ग्राम ग्रहि, विमल गंग तटि वंदि।
छाया भरि रथ छोडियौ, ऊंवरि तरि रघुयंदि॥
राज सेज लषमंणि रची, त्रिण पत्र आणि सुतांम।
सुमित्र दियो जळ सुरसरि, पीयो सीत पति रांम॥
की बहु निंदा कैकई, दाखि सुमित्र गोह दिसि।
रहै न लखमंण रांम तै, निकट सुदुरि सुनिसि॥
प्रातः सुमित्र रथ पर हरै, अमल दूध वड़ आंणि।
दस छोड़ण बांधा दहूं, जटा मुकट सुजांणि॥
सुमित्र न छोड़े रांम संग, सीख दीयै श्री रांम।
भंग हुकम अध्रम भंणी, कीया प्रधांन प्रणांम॥
गंगा पारि सुमित्र गुह, विछोह थया विरांम।
अद्रिष्ट थया सुतेज अंग, सीत लखंण श्री रांम॥
रांम चले रिख्या करत, मुनिवर भेख प्रमांण।
मौहरि लखमंण सीत मधि, पूठीज सारंग पांण॥
प्रथम सरोवर पौह करणि, वट तल वनि विश्रांम।
मारि उधारे ऐक म्रिग, रहे निसा त्रिण्हि रांम॥
चाप बांण संग्रह चले, जमुण गंग तटि जांम।
राघव भारदवाज रै, वसे धांम विसराम॥