उतरांचळ में खड़्यो हिंवाळो, रिच्छा करै हमारी।

मातभोम रै सोनमुकुट री, सोभा सैं सूं न्यारी!

कांधै ऊंच मेघ समदर नै,

दिखण धरा सूं आवै!

खाय हिंवाळै री टक्कर सूं,

पाछो-ई मुड़ ज्यावै!

बरसै मेघ हिंवाळै सारू, चढतां गिगन अटारी!

मातभोम रै सोनमुकुट री, सोभा सैं सूं न्यारी।

ठेठ भारती रा दिखणांचळ,

समदर चरण पखाळै!

वीर सपूत सिंवाड़ै ऊभा,

मायड़ भोम रुखाळै!

हिम्मत साथै जोस बापरै, रैय लड़ण बै त्यारी।

मातभोम रै सोनमुकुट री, सोभा सैं सूं न्यारी!

विंध्याचळ सतपुड़ा स्रेणियां,

धरा रतन रळकावै!

करै पोखणा जग जीवन रै,

हित स्सौ कीं खळकावै!

ऊषा री अरुणोदै वेळ्यां, निवण करै सिंसारी!

मातभोम रै सोनमुकुट री, सोभा सैं सूं न्यारी!

गंगा-जमुना बगै सुरसती,

पुण्य पावनी धारा!

आंचळ सरस बणै मां धानी,

कस्ट काट नै सारा!

पूरब-पिच्छम दिशा भारती, पळकै ऊठ संवारी!

मातभोम रै सोनमुकुट री, सोभा सैं सूं न्यारी!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सत्यनारायण इन्दौरिया ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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