बळ वो सादर वरणवूं, सारद करौ पसाय।
पवाड़ौ पन्नगां सिरै, जदुपति किधौ जाय॥
प्रभु घणा चा पाड़िया, दैत वडां चा दंत।
के पालणै पोढ़ियां, के पय पान करंत॥
किणै न दीठौ कानवौ, सुण्यौ न लीला संध।
आप बंधाणौ ऊखळै, बीजां छोडण बंध॥
अवनी भार उतारवा, जाग्यौ एण जुगत्ति।
नाथि विहांणै नित नवै, नवै विहांणै नत्ति॥
हे शारदा! आप मेरे पर अनुग्रह कीजिये जिससे मैं यदुपति श्रीकृष्ण ने कालिया नाग के सिर पर चढ़कर जो पराक्रमपूर्वक युद्ध-चरित्र किया, उसका सादर वर्णन कर सकूं।1
प्रभु श्रीकृष्ण ने अनेक बड़े-बड़े दैत्यों के- कइयों के पालने में सोते हुए और कइयों के स्तनपान करते हुए, दांत उखाड़ डाले(नष्ट कर दिए)।2
भगवान श्रीकृष्ण के लीलायुक्त चरित्र ऐसे हैं जो न तो देखे गये हैं और न सुने गये हैं। दूसरों को बंधनमुक्त करने वाले ओखली से बंधे हैं।3
भगवान श्रीकृष्ण भूमि का भार उतारने के लिए इस रूप में प्रकट हुए हैं कि- नित्य प्रातः काल में नवीन-नवीन उच्छ्रंखल व्यक्तियों को अपने वश में कर लेते हैं।4