दूहा

किसौ वाद रिषि सौं करै, सांभळि जनक सगात।
चाप दिखालौ रांम चंद। भणै लखमंण भ्रात॥

दुवा कुसधज भ्रात दत, भणै जंनक सुभाख।
लाख हमालां मख्ख लगि, निठि आंणियौ पिनाख॥

राघव पासि धनंख रै, आए लषिण अनुज।
कठिण चाप कोमल कुंवर, जिगि थयो अचिरिज॥

सभा मधि दसरथ सुत, रूप इहै रघु रज्ज।
सहू नाखित्रां मधि ससि, ससि मधि सुरज्ज॥

बदन विलोकै रांम वर, ईखै रूप अपार।
कीयौ यहै पंण जांनकी, कंत दसरथ कुमार॥

पड़ी पिता गुरु पांतरणि, इसौ कठिण पंण औड।
चाप चढे किंम रांमचंद, किंम पूरीजै कौड॥

सीता आरति रांम सुनि, ईस पिनाक उपाड़ि।
लीला पाणि अखेर दळां, चाप कसीसा चाडि॥

छप्पय

चाप उठा रांमचंद, किनां आनंद जनंकि उरि।
धरे नमायो धनंख, दुनी अनि भूप नमे दुरि।
प्रभु खांचियौ पिनाक, किनां निज मन जांनकिय।
कसि भंजियो कोमंड, किनां संसो जनंक जिय।
वैदेह द्वारि दुंदुंभी वजै, विमल पुहप देवे वरिख।
वर माळ धरे कंठ वर तरंणि, हुवा धमळ मंगळ हरिख॥

स्रोत
  • पोथी : राम रासौ ,
  • सिरजक : माधवदास दधवाड़िया ,
  • संपादक : शुभकरण देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : द्वितीय
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