बिरखा रुत आई सुहावणी मीठा बोलै नाचै मोर।

ओकण सोकण चिमकै बीजळ बादळिया छाया घणघोर॥

मोटी बूंदां मेवौ बरसै इन्दरधनुस तण्यौ पिचरंग।

मधरी-मधरी गाजै बदळी आभौ लागै घणूं सुरंग॥

‘पिव-पिव’ करै पुकार पपैया मींडक टरडै़ सगळी रात।

आठूं पंज्या खोल्यां फिरती तीज्यां करै लाल नै मात॥

बिरखा धोबण धोवै अम्बर भर बादळ मसकां में नीर।

बिजळी मिस चूड़ौ चिमकावै जाकर देव नदी रै तीर॥

काजळ सै बादळ हाथी रै मद सूं टपकै मोटी बूंद।

गाजै मे-म्हाबत चलवावै जद बिजळी आंकस सूं खूंद॥

बुगला उडै जोर सूं चालै मतवाळी सी परवा पून।

देख बटाऊड़ां री परण्यां झुर-झुर रात्यूं बाळै खून॥

तिथी भादवा बदी अस्टमी बौळी बीत चली ही रात।

झिरमिर-झिरमिर छांट पड़ै ही पूरी थमी नहीं बरसात॥

बिन्द्राबन में नन्द महर नै जाय जगा मुनि गरग अधीर।

साथ लेयग्यौ बात करण नै सीधौ जमनाजी रै तीर॥

बोल्यौ ‘भार हरण धरती रौ करुणामय लीन्यौ औतार।

राजमहल री ठोड़ां अबकै चुण्यौ आय है कारागार॥

करणै खातर दुख पीड़ित बसदेव देवकी रौ उद्धार।

दानवता पर मानवता री विजय देख लेवै संसार॥’

नन्द कह्यौ ‘है कंस बडौ अन्यायी निरसंस उदंड।

मुनियां रौ अपमान करै है हरिभगतां नै देवै डंड॥

धरम-करम री हंसी उडावै पूजा नै बोलै पाखंड।

ईस्वर नै ना मांनै नास्तिक बेदां नै वी कहै अफंड॥

मुरख उडावै माल-मलीदा पिंडत लोग करै उपवास।

दुस्ट जणां री संगत साधै चोखा कदै आवै पास॥

थे जाणौ बसदेव भोगर्‌यो भोत दिनां सूं कारागार।

सा विपदा चुपचाप सहै है करै क्यूं भी सोच-विचार॥’

बोल्यौ गरग ‘बात है सांची दुख सूं भर्‌यो पड़्यौ संसार।

जीवण बीच जीव मातर सै भोग रह्या है कस्ट अपार॥

दुख-सुख रौ अनुभव करणै सूं मन में होय हरख के सोग।

जे अनुभव नहीं करै तौ दुख क्यां खातर पावै लोग॥

बेरौ नहीं करै कुण अनुभव मन, इन्द्रिय, आत्मा, के देह।

चेतन-रूप आतमा है पिंडत बोलै निःसन्देह॥

अेक जिसी आत्मा जद सै में छोटौ-बडौ ऊंच के नीच?

फेरूं सुख-दुख मिलणै में है जीवां में क्यूं इतणौ बीच??

अेक कस्ट पावै अनेक है, दूजा भोगै है आनन्द।

अेक गुलामी रौ दुख भोगै, दूजौ रहै घणूं सुच्छन्द॥

अेक दुस्ट अत्याचारी बण करतौ रहै सदा अन्याय।

दूजौ सहै बोल बाल्यौ क्यूं भी नाहीं करै उपाय॥

ईं दुभांत रौ के कारण है क्यूं जण-जण में इतणौ भेद?

कोई पाट पटम्बर पहरै दूजां चादर सतरा छेद॥’

नन्द कह्यौ ‘सगळां’ रौ न्यारौ-न्यारौ भाग करै कांम।

पुन्न-पाप जो करै आदमी भाग होय बीं रौ परिणांम॥

मिलै भाग रै गैल हरख दुख विचार मांनै संसार।

भोगै जीव जलम जलमांतर करमां रौ फळ लाचार॥

ईं सूं करम बडौ दुनियां में सो क्यूं होय करम आधीन।

अपणौ भाग बणाणै खातर जीव आप है स्वाधीन॥

जो जण जिसड़ौ काम करैगौ उसड़ौ पावै परिणांम।

‘बीज नीम रा जो बोवैगौ क्यूं कर खावैगी बौ आंम॥’

गरग कह्यो ‘है भागबिधाता मिनख आप रौ आप जरूर।

फेरूं भी दरकार हरी रै दया-भाव री है भरपूर॥

करणै नै स्थापना धरम री हरणै नै धरती रौ भार।

दुस्ट-दमन सुजनां री रिछ्या करण नै लेवै ओतार॥

याद करौ बसदेव देवकी रै बियाव रौ परसंग।

कंस कर्‌यौ किण बिध पल भर में अपण आप रंग में भंग॥

करै देवकी रौ जायैड़ौ सुत अस्टम तेरौ संहार।

ईं अकासवांणी नै सुण कर मन में कर्‌यौ बिरोध अपार॥

बाळ पकड़ छोटी बाई रा हुयौ मारणै नै तैयार।

मान्यौ ना, बसदेव जद तक दिया तीन बर बचन बिचार॥

ईं प्रण में बंधकर कीन्यौ सात लाडलां रौ बलिदांन।

आज आठवां सुत री बेळयां आया आप विस्णु भगवांन॥’

नन्द कह्यौ- ‘आ के बिडम्बना भाग करै कितणौ उपहास।

अपणै हाथां सूप आप बेटा कर्‌या काळ रा गास॥

ब्याव दिनां सूं लोग लुगाई कैदी बणकर भोग्यौ त्रास।

कारागारां मांय बिचारा मना सक्या अपणौ मधु-मास॥’

बोलौ थे बसदेव देवकी कीन्यौ अठै कूण सो पाप।

बिना कसूरां भोग रह्या जो सगळै जीवण में सन्ताप॥

कंस कर्‌यौ क्यूं क्रूर करम छोटा बालां रौ संहार।

कुंणसो कांम बणायौ ईं सूं खाली डर रौ अेक विचार॥

के बौ जाण नहीं बरौबर छिणभंगुर होवै देह।

जग में जलम्योड़ा जीवां नै मरणं पड़सी बिन सन्देह॥

आज नहीं तौ तड़कै मरणूं रोकण रौ उपाव है व्यर्थ।

थोड़ा घणा जीवणै खातर जीव करै अन्याय अनर्थ॥’

बोल्यौ गरग ‘कंस तौ जाणै बीं रै बस हो सो संसार।

पण हो जलम-मरण परणै पर कदै कोई रौ इधकार॥

राजनीति कोरी विडम्बना छूटै ना पड़ ईं रै फन्द।

राजा सफल होय बौ जग में जो जाणै ज्यादा छळ-छन्द॥

है सन्देह धरम राजा रौ संगळिया है गरब-गुमांन।

राजीपण में भी संकट है नाराजी में कस्ट महांन॥

जो कठोर करड़ौ राजा हो पिरजा बीं रौ राखै मांन।

दुबळौ मांनै सभी नरम नै मूरख बाजै दयानिधांन॥

बदी भादवा आठ्यूं आई सन-सन-सन चालै ही भाळ।

चिम-चिम-चिम चिमकै ही बीजळ बादळ गरजै हौ बिकराळ॥

अम्बर में डम्बर हौ बौळौ पांणी बरस्यौ मूसळधार।

सगळा मारग हा सूना छाया मांय ल्हुक्यौ संसार॥

काजळ सै काळै बादळ में चांन चाणचिक चिमक्यौ आप।

बैठ्यौ हौ बसदेव जेळ में मन में सोच रह्यौ चुपचाप॥

बठै देवकी री इतणै में गूंजी करुणा भरी पुकार।

गयौ तुरत बसदेव भाग कर देख्यौ क्यूं अद्भुत बेपार॥

आंगण में हौ बडौ च्यानणौ तेज फैलर्‌यौ सुरज समांन।

अनुपम छिबी सांवळी सूरत मूरत मनमोहणी महांन॥

संखचक्र लै हाथ चतरभुज आप बिराजै हा भगवांन।

हाथ जोड़ सिर नवां देवकी कर री ही इस्तुति गुणगांन॥

पगां पड़्यौ बसदेव जायकर रह्यौ तन-मन रौक्यूं ग्यांन।

गद्‌गद्‌ सी बांणी में बोल्यौ घणी दया कीनी भगवांन्॥

आंख उठा देख्यौ जद दोनूं पलट गयौ हौ सगळौ रंग।

छोटौ बाळौ खेल रह्यौ हौ और नहीं हो क्यूं भी ढंग॥

बेरौ पड़्यौ के हौ सांचौ के हो सुपनां रौ जंजाळ।

पण बौ दिरस याद जद आवै हिवड़ौ तौ हौ ज्यावै न्ह्याल॥

सुण बाळै रौ रोणूं मन में उपज्यायौ दोन्यां नै प्यार।

बिना कहै हूणी रै बस बसदेव हुयौ जाणै नै त्यार॥

दीख्यौ कोई नहीं कठी नै सूनौ सो हौ कारागार।

सूत्या पहरेदार सामनै खुलग्या अपणै आप दुवार॥

आतुर जणणी रै हाथां सूं बाळौ जोरांमरदी खोस।

डलिया में सिर पर धर चाल्यौ हौ बसदेव बिनां ईं होस॥

अंधेरौ घनघोर, चोर सो ल्हुक्यौ पड़्यौ बादल में चांन।

दीसै हाथ-हाथ सूं नाहीं फेरूं कुण देवै हौ ध्यांन॥

रिमझिम-रिमझिम पांणी बरसै गहरै कादै में चुपचाप।

चाल पड़्यौ बसदेव जोर सूं बिनां चेत अपणै आप॥

उफण-उफण कर बहरी जमना ऊंची-ऊंची ऊठै झाल।

बाळै रा पग परस चालणै लागी मंदी-मंदी चाल॥

थांरै घर में जठै जसोदा सूती ही बेचेत पिलंग।

बठै सुवायौ लाला नै तौ किन्या उठा लगाई अंग॥

बां ईं पगां चालकर पाछौ चाल्यौ जद बसदेव उदास।

हरि रौ ध्यांन तपस्या करतौ मिलग्यौ म्हैं जमना रै पास॥

साथ गयौ म्हैं घणी दूर तक जणां बताई सगळी बात।

अै समचार बताण खातर आयौ हूं म्हैं रात्यूं रात॥

अेक पूत तौ पहली भेज्यौ थां रै कनै रोहिणी साथ।

दूजौ भी चुपचाप अेकलौ अब पूगायौ हाथूहाथ॥

इण नै पाळौ बडा लाडसूं जाण आपणी ही सन्तांन।

जळम उछाव करौ भौतैरौ घणा गुवावौ मंगलगान॥

बिनां कंस रै जाण्या बूज्यां अै जद बडा होय चुपचाप।

मां-बापां रौ दूर करेगा आपै संकट-सन्ताप॥'

नन्द घणैरौ राजी होयौ सुणकर मुनि री सगळी बात।

बोल्यौ - 'थे क्यूं फिकर करौ ना, कांम होयगौ चोखी भांत॥'

गरग गयौ आसरम आपणै करतौ-करतौ हरिगुण गांन।

नंद महर भी घरां पधार्‌या कर-कर जमनाजी में स्नांन॥

स्रोत
  • पोथी : बिन्द्राबन ,
  • सिरजक : महावीर प्रसाद जोशी ,
  • प्रकाशक : विवेक प्रकाशन, सादुलपुर (चूरू) ,
  • संस्करण : प्रथम
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