दूहा

संत-असंत सार

तंडण कर कविता तणौ, घालूं चंडण घूब।

भंडण जोगै भेख रो, खंडण करणौ खूब॥

मोडां दो गै माळिया, गाबर फोगै गाल।

भोगै सुंदर भांमणी, मुफत अरोगै माल॥

खीरां बांनी ज्यूं खरा, बीरां छांनी ब्याध।

छ्यांनी पग धीरां धरे, सीरां कांनी साध॥

मा जाई कह मोडिया, करै कमाई कीर।

बाई कहै जिण बैन रा, बणै जँवाई बीर॥

आज काल रा साध रौ, ब्याज बुहारण बेस।

राज मांय झगड़ै रुगड, लाज आवै लेस॥

वडी हवेली वीच में, हेली सूं मिळ हाय।

बण सतगुरु छेली बखत, चेली सूं चिप जाय॥

झोटा ज्यूं साधू झपट, जोटां दे जुग टाळ।

चेली सूं चोंटा करै, रोटां हित रुगटाळ॥

जणियां जणियां नै जिकां, धणियाँ बिन ली धूँस।

मिळ भणियां अब मेट दूँ, हुरकणियां री हूंस॥

छंद घग्गर निसांणी

तो सतगुरु ताया अरथ आया, गरठ हि व्यर्थ गमंदा है।

पीछे पिछताया ठीक ठगाया, भाया भूरि भमंदा है।

मोडां सूं भीतर मिळिया, सिळिया रस सोधंदा है।

मुख तें रट रांमा दिल बिच दांमा, बांचा घट बोधंदा है।

मुख तें रट रामां दिल बिच दांमा, बांचा घट बोधंदा है॥

गुरु आप अज्ञांनी जुगत जांनी, चेला मुक्त चहन्दा है।

करणी रा काचा साध साचा, बाचा बहुत बकन्दा है।

अन्धै को अन्धा धर के कन्धा, चल कर पार चहन्दा है।

नगटा निरदावे जमपुर जावे, खररर खाड खपिन्दा है॥

ग्यांनी तन गोरा ठोरम-ठोरा, चादर में चिळकन्दा है।

है मदवा हाथी साथण साथी, खाथी चाल चलन्दा है।

रस्ते में रस्ता खव्बा खस्ता, हस्ता खूब हिलन्दा है।

मसकरियां मांडे भड़वा भांडे, गुंडा बांध गछन्दा है॥

हंसी पर हंसा मुख में मंसा, आसा थित गन्दा है।

पोढै परियंका सदा निसंका, श्रीखंडस सूंघन्दा है।

धन लेवत धीठा देत दीठा, मीठा ठग मोहन्दा है।

जग चोरी-जारी प्रभु सूं प्यारी, स्यारी बिध सोधन्दा है॥

लम्पट खळ लुच्चा बीजू बुच्चा, टुच्चा पण टोकन्दा है।

चाकर रा चाकर ठाकर ठाकर, बाकर बण बोकन्दा है।

लोलुप हुय लड़दा खावण खुड़दा, पड़दा में पैसन्दा है।

भायां सूं भागे आयां आगे, बायां ढिग बैसन्दा है॥

रमणी वरहीना निरख नवीना, रांम रांम रणकन्दा है।

कन्द्रप रा कीटा फब तन फीटा, भंवर गुफा भणकन्दा है।

कांमी अरु क्रोधी बेद बिरोधी, परगट नरक पड़न्दा है।

भगती नहिं भोगा जुगत जोगा, अध बिच सन्त अड़न्दा है॥

बेहद रा बासी हद में हासी, आसीबिख उफणन्दा है।

खूटोड़ा खोळा गाफल गोळा, भोळा इश्क भणन्दा है।

आस्तिक बिन इन्दक नास्तिक निन्दक, सास्तिक मत सोखन्दा है।

तज धरम त्रिदंडी अधिक अफंडी, पाखंडी पोखन्दा है॥

पढिया नहिं पाटी घट में घाटी, तळ ताटी तोड़न्दा है।

करणी में किर किर घिरणीं घिर घिर, फिर फिर सिर फोड़न्दा है।

फिरिया नहिं फेरू मारग मेरू, तेरू पार तिरन्दा है।

बकवाद बिखेरू हिय में हेरू, गेरू रंग गहरन्दा है॥

अनहद नहिं आरी विखम विकारी, धन धारी धोकन्दा है।

अगली धर ऊंची चेडत चूंची, कड़ कूंची कोकन्दा है।

पावण नै पेड़ा भल पण भेड़ा, नेड़ा नहिं निसरन्दा है।

कुपियां सूं कुपिया लुपियां लुपिया, रुपियां सूं रीझन्दा है॥

विलळा ग्रंथ वाचै रसिक राचै, छब छाती छोलन्दा है।

निकमा नर नारी बारम्बारी, बलिहारी बोलन्दा है।

नांणौ नारायण प्रद पारायण, रामायण रोसन्दा है।

छळ बळ कर छांने मतळब मांनें, मूरख गल मोसन्दा है॥

अज भेक उजागर नर खर नागर, गुण सागर गूंजन्दा है।

नाभा कृत नांमी कथा निकांमी, भ्रम गांमी भूंजन्दा है।

कर खेचातांणी चूंदी कांणी, सुरबांणी सोकन्दा है।

गद पद गन्धासय मद मन्दाशय, छन्दाशय छेदन्दा है॥

गध गाया गावे छापा छावे, जहकाया जहकंदा है।

गुण औगुण गोफा तरक तोफा, बोफा सुण बहकन्दा है।

मणिबन्ध बन्धा बन्धन बन्धा, अन्धाधुन्ध अणन्दा है।

धूरत दे धोखा बोड़ा बोखा, चोखा रस चाखन्दा है॥

जुग तरण जुहारे परण पधारे, चरण कमळ चूंपन्दा है।

अंतर अभिमांनी गदर गुमांनी, बक ध्यांनी बूबन्दा है।

मन फेल मावे सेल सुहावे, डेल बक्र डोलन्दा है।

खट चक्र खोले तक्र बितोले, एक चक्र ओलन्दा है॥

कर नवल किसोरी संघर सोरी, मरियादा मेटन्दा है।

बिसफळ बैरागी त्रिभवन त्यागी, भागी भुज भेजन्दा है।

चेली चिरताळी नित नखराळी, चितवाळी चीतन्दा है।

करड़ी कर कन्धर बन्धर बंधर, जाळंधर जीतन्दा है॥

गळियां में गोता खावत खोता, बोता मार बहन्दा है।

हित में बड हांणी जो नित जांणी, चित में नार चहन्दा है।

विधवावां बाला ठीकर ठाला, अध-काला गन्दा है।

माहब मन मोळा टोगड़ टोळा, पोळा पग पूजन्दा है॥

जग में कहे जोगी भीतर भोगी, सोगी सम सोवन्दा है।

महिलानें मोगी गूंगी गोगी, रोगी जिम रोवन्दा है।

सांगी सतहीणा है जतहीणा, मत हीणा मांगन्दा है।

पागल सिस पाया दागल दाया, भागल सिर भांगन्दा है॥

अति खूंणा ऊंडा थूंडम-थूंडा, कूंडापन्थ करन्दा है।

मूंछां बिन भूंडा भासत भूंडा, भरसून्डा भभकन्दा है।

लड़थड़ गळ लंजा हतरस हंजा, मनमथ कांम मदन्दा है।

जारी कर जोरी सठ सिर जोरी, कोरी हाय कथन्दा है॥

चेली अरु चेला मांडे मेला, कांम विकल किलकन्दा है।

नित हांजी नांजी पूरा पाजी, ताजी रांड तकन्दा है।

बातां रा ब्याळू सरब सियाळू, ऊंनाळू ऊंगंदा है।

जूता जतळाया मन मतळाया, बतळाया बीखन्दा है॥

लीकां कुळ लोपी जगत जोपी, खोपी में खावन्दा है।

जरकावण जोगा मूंसळ मोगा, गोगा गुरु गावन्दा है।

बिसवास बढावे अंट में आवे, कंठक मल काटन्दा है।

बिट रक्त बहावे नहिं निजरावे, चुपका व्है चाटन्दा है॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय
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