सूर तेज तम तार मोर चंदन सु भुजंगा।

सुनत तुपक की तरास बिरछ सब तजै बिहंगा॥

सीत कोट जिमि भान जानि जागे ज्यूं सुपिना।

गुरू द्वारे बिष दूरि ओषधी रोग सु अपना॥

स्यंध हेरि सुरही गई वोले आदित देखि करि।

रज्जब अघ ऐसे रमहिं हिरदै आवत नांव हरि॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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