अैसी यहं रीतिसौं लुभांनै बलि बारंबार,

कहीहू जात सुनी बात जे चलियां।

रावरै तौ रीझि इन बातनकी परी आय,

चंद चाहि चंदमुखि मिलियां गलियां।

भीजी अनुराग उन अंगनकैं राग अंग,

अंग प्रति राग जाकैं रंगरीझ छलियां।

चन्द्रिकान चलियां चकोरूंकी अवलियां वे,

चौकीदार भई हैं चंबेलिनकी कलियां॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुधसिंह हाङा ,
  • संपादक : श्री रामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राजस्थान )
जुड़्योड़ा विसै