नैण बिना कहां निरख, बिना मुख वयन न कोई।
श्रवण बिना न सुणोह, नास बिन वास न होई।
पांव बिना नहीं गमन, बिना त्वक स्पर्श ना है।
रसना बिना न रस्स, करां बिन काम कहां है।
गुरुदेव बिना यूं ज्ञान नहीं, ताहि परख पद पेखिये।
हरिदेव दास या गुरु सहित, दर्शन हरि उर देखिये॥