कनक तुला चढ़ि दानि दानि पुनि गुपता दीजै।
है गै पट परवाहि बिबिध बेदो गति कीजै॥
कोटि गऊ कुरुखेत देहिं दिनकर प्रब देखै।
अठ सठि तीरथ न्हाइ दान जग करै अलेखै॥
भोजन भोमि भंडार दे सुत नारी उदकै धरम।
सुमिरण बिन सीझै न जिव जन रज्जब पाया मरम॥