बिरखा रा बायरिया सूं

नूंवां किंवाड़ आंवसग्या

अर जुड़नी कोनी आया तो

किंवाड़ रा सांकळ कूंदा पूछ्यो-

रे भायलां या कांई बात हुई?

किंवाड़ चरड़चूं करता बोल्या

अर आंवसबा रा भेद खोल्या कै-

ईं बिरखा पौन सूं म्हारो

काळजो हरख सूं फूल जावै!

ईं रुत मांय रूंख उपरला

दन याद आवै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कैलाश मंडेला