दुनिया रै

हरेक गांव में

पक्कायत लाधैला आपनैं

गाभा सीड़तो दरजी

बाळ काटतो नाई

अर टापरा संवारतो कारीगर।

दुनिया रै

हरेक घर में

आप जोय सको

काच, कांगसियो

अर तेल-फुलेल।

फूठरापै सारू आफळ

मानखै रो

जुगां-जूनो सुभाव है

पण कुण है वो

जको जद-कद

धूड़, धुंवै अर लाय सूं

बदरंग कर नाखै

मिनखपणै रो उणियारो।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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