जगत

मोटो सून्य है एक

उच्चारां अठै

जका सबद

बै आय पड़ै

पाछा

आपांरी

झोळी मांय

मीठे री

चावना सूं भरियोड़ै

खारै पुरसारां नै

समझणो जरूरी है

जगत रो

मिजाज॥

स्रोत
  • पोथी : कंवळी कूंपळ प्रीत री ,
  • सिरजक : रेणुका व्यास 'नीलम' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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