कैड़ी ही रीत

परंपरा कै रूढी?

ज्यूं-क्यूं ही

पण ही थरप्योड़ी

मरदां री!

बाजतो स्वयंवर

पण घालणी पड़ती माळा

किणी राजकंवर रै गळै ई।

कोनी हो कोई इधकार कन्या नै

कै बदळ सकै

काण-कायदा स्वयंवर रा।

जिको चुणीजै भरी सभा

बो बाजैला भरतार

काटणी पड़ैला उण सागै

सैमूदी जीया-जूण।

तद सूं अजेस तांई

कीं दूजी ढब सही

चालै स्वयंवर रो चाळो।

कदी-कदास

अेकाध बेजां चुनौती टाळ!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : कमल रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
जुड़्योड़ा विसै