अेक दिन सोचतां-सोचतां

सोचण लाग्यो,

बास री सगळी लुगायां

चावै बा काकी लागै

चावै बा ताई लागै, दादी लागै

बां’रो कांई नांव है?

आ, जाणन आरी कदै सोची कोनी!

परथावो हुंवताईं बां'री

कीं 'रै कीं रै साथ जुड़गी

सगळा सूं पैलां बा हुई

ख्याली री बीनणी

बीं सूं पाछै बा बणी

सुरजै री घरआळी

अर छैकड़ बा बणी

बा ईंया बिना नांव रै

सुरगां सिधारगी

पण अजताणी बास में

बी'रो नांव, कुण नी जाणै।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : सतीश गोल्याण ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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