अेक

सपना बांध दिया
उण रा
सिंदूर रै सीगै
फेरूं भी वा जावै मदरसै
आखरां में
खुद नै ढूंढण धकै,
कंवळी-काची ऊमर री
नाजुकड़ी
पांख पसार
बिलमाय लेवै खुद नैं
आजादी रै अैसास सूं...
मुळक तो धरी अडाणै जाणै
बापूजी री मजबूरी
मां री बीमारी अर
समाजू रीतां रै करजै बदळै
पछै ई वा हांसै
खुद नै खुद सूं अळगी राख
‘सुहाग-टीकी’ रै फरज सूं दबी...
बेकसूर
ऊंचायां फिरै ‘साप’
छोरी होवण रो
क्यूं कै
इंसान होवण सूं वजनी व्हैगी
उण री
‘नार-जूण’!

दो

खेतां री छाती माथै
ऊग आई
नाजोगी-विडरूम
काळी-भूंडी चिमन्यां
बिसूंजती
हरियाळी
हांफण पण लागी है
दमै रै रोगी दांई…
अेक दिन
समूळो गिट जावैलो
इण बाजार रो अजगर
हूंस-हौंसलै री हरियळ-कूंपळ
विगसती
जैरीली खूबियां
बदळ देवैली
इण परकत नैं अकूरड़ी में
अर टाबर भणैला कदैई
पोथियां में:
बरसां पैली खेत होवता हा,
हूंस री हरियाळी सूं
हांसता-मुळकता…!
स्रोत
  • पोथी : राजस्थली जनवरी-मार्च 2014 ,
  • सिरजक : मोनिका गौड़ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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