मन में चावना है—

भींट लू उण पा'ड़ नै

वादळा ज्यां पर जमै।

अेक अैडी भावना है—

रचना रचां, अैडी रचां

आतमां जिणमें रमै।

अंत म्हारी कामना है

रोक दूं उण वाव नै

मिनखियत जिणसूं नमै।

पण म्हारी चावना

भावना

अर कांमना नै

फळीबूत व्हेतां

जे म्हें देख सकूं नीं

तो विस्वास है

देखला लारलो मांनखौ

भरी अतुट जिणमें आस है।

स्रोत
  • पोथी : झळ ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : जुगत प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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