अबकै खूब

गाज्या बादळ

अर डूंगर रै माथै थमग्या

अबकै खूब किड़की बिजळी

अर इंदर आंख्यां मींच'र

काठौ रैयग्यौ

ठाडी बिरखा सूं

उणरौ पोर-पोर भीजग्यौ

ल्यौ

खूब उग्याई घास

गोडा सूदी

गाय-ढांडां रै

हुयगी मौज

हर्‌यो हुयगौ

भाटै-भाटै रौ मूंडौ

गुवाळियां रै हिरदै

हरख उमड़यो

अब डूंगर चढ़ बोल्या मोर

अलगोजां सूं गूंज्यौ

आखौ भाखर

चकरी री दांई

नाची धरती

आमूला, गंगेड्या

अर गूलर सूं

लदपद हुयगा सगळा बिरछ

टाबरां रै

चढग्यौ कोड

बैवतै नीझर में न्हावण रौ

अर मीठा खड़ल्या

खावण रौ

जीव-जिनावर

सगळा ढक्या डूंगर कांनी

अबकै खुब हुई बिरखा

अर जोर सूं उतरया नाळा

पण फेरूं भी

डुंगर रौ हियौ

खाली रौ खाली रैयगौ।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह सेखावत ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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