दन में बाजे डूँज बायरा

रातां में अन्धारा रे

मनख बापड़ै मूँन ले लियो

हवा लगावे नारा रे

कुण री बाँह उतरण्यां कुण री?

कुण री जेब कतरण्या कुण री?

कुण रै होठाँ कुण मुळकै है?

बाया फूल निगलगी धरती

मौसम उगळै अंगारा रे।

सड़कां सड़कां सैर ऊगियो

गाँव-गली में जैर पूगियो

घर घर में है टूटा हाँडा

केलू खर-खर फोड़े डांडा

रेवणिया है राम भरोसे

आँगण करै खंखारा रे।

धोळ दुपेरां चमकै तारा

कतरा थारा कतरा म्हारा

इणरो न्याव करो रे पंचां

टूट्या मनखपणा रा संचा

लाभ हाण रा खुल्या चोपन्या

खाता खतग्या परवारा रे।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण: भगवती लाल व्यास ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : कुंदन माली ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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