जुद्ध रो घाव

कितरो गै’रो हुवै ?

तो जुद्ध री पीड़

भुगतणियो जाणै।

जुद्ध में टाबर-जुवान, बुढ़ा-बडेरा

अर लुगायां हुय जावै बेघर...

छूट जावै-गांव, स्है’र

बणणो पड़ै शरणार्थी..!

भूखा-तिसा, गरमी-सरदी सैवता

नीं भूल सकै जुद्ध रो घाव...

अणबोला टाबरां रै सिर सूं

उठ जावै हाथ

टूट जावै डोरो स्नेव रो!

जुद्ध री भेंट चढ़ जावै मायत

भाई- भैण हुय जावै अळगा

चावता थकां नीं मिट सकै जुद्ध रो घाव

बमां रै धमाकां सूं लागी लाय

जकी नीं बूझै किणी पाणी सूं...

दुकान- मॉल आय पड़ै हेठै

स्कूल, मैदान घर-गुवाड़ी

हुय जावै राख

फसलां साथै मिटती जावै नस्लां

नीं उपजै अनाज,

पीढ्यां हुय जावै बांझ!

मा होवण रो हक खोवती

धरा जाणै जुद्ध रो घाव

जुद्ध मांय मिनख नीं मरै

शहीद हुवै कैई कौम

जुद्ध चायै दो देशां रै बीच हुवै

का फैर दो कौमां रै बीचै

मरणो तो पड़ै मिनखपणै नै ई!

मानवता मरै

टाबर हुय जावै अनाथ

जुद्ध में बच्योड़ा जाणै जुद्ध रो घाव।

अणबोल जिनावर, रूंख-वनस्पति

सगळा नै मरणो पड़ै अणचिंती मौत

करै कुण? भुगतै कुण?

फगत स्वारथ रै मिस हुय जावै मिनख बावळो!

मांड लैवे पाणां कब्बडी सा,

खेल-खेल में मचै घमसाण

सिर लेय लेवै पाप जुद्ध रो...

भुगतणियो जाणै जुद्ध रो घाव

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : रामजीलाल घोड़ेला 'भारती'
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