वागड़ ना गाँव-गाँव, धाणी-धाणी सेर-सेर

घेर-घेर देखो मले, वागड़ी जुबान है।

वागड़ ना वासी अमैं, वागड़ी में वाते करँ

वागड़ी में लकँ वासँ, वागड़ी में गान है।

मावजी नी पाँच पोथी, वागड़ी में लकी थकी

आणं माथे शोध थंय, मली रियु मान है।

वागड़ प्रदेश अने, वागड़ी नी वाते आवी

आक्खा जग मय पूगैं, म्हारू अरमान है।

स्रोत
  • सिरजक : विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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