वायरै री गत

वायरो जाणै

जको बांटतो रैवै

खुद नै अष्टपौर

लोग कठै समझै

अण बोल्या बोल,

कद कूंतै वै

मूंन रो मोल?

सामरथ मोल चुकावै

पंखो मोल ले आवै

पण पंखै रै कनै

कठै है गंठाऊ वायरो?

वायरो पसर्‌यो है एर-मेर-चौफेर

पंखो उणनैं तोड़ै

अर फेर खुद गावै

खुद री बिड़दावळी

पछै बांटै वायरो टांकै तोल

नेड़ै रैवणियां नैं कीं बेसी

अळगां नै कीं कमती।

लोग राजी हुवै

वांनै मिल रैयो है वायरो

पंखां रै पांण।

वायरो तो तद हो

जद पंखो नीं हो।

आपूं आप बंटती चीज

अर किणी बिचौळियै रै

मारफत बंटती चीज रो फरक

कद समझैला लोग?

बिचोळियो चीजां नै नीं तोड़ै मन मरजी

वो तोड़ै है चीजां रा

हेताळू मन नैं

हजार-हजार टुकड़ां मांय।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थली राष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति
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