अरे प्रखर प्रीत रा झूलणा!

थां झूलियां

जोबन-मद ऊभळै

अभाव री असली पीड़ परखण रा

छिण अणमणा

उर-पलड़ां उतरै।

रे! थांसौ बोझाळ हरगिर आवखौ

थांसो खारौ बासंग जैर।

पल पल कलप कल्पना रौ

दीरघ सांस उसांसां

आकळ पिरांण अभासै।

रे! हेत-रतन परखणियां-

हेमहेड़ाऊ,

आज तौ

थारी बाळद रा रुण झुण रव

रग रग रळतळै॥

स्रोत
  • पोथी : परम्परा ,
  • सिरजक : नारायण सिंघ भाटी ,
  • संपादक : नारायण सिंघ भाटी
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