अरे प्रखर प्रीत रा झूलणा!
थां झूलियां
जोबन-मद ऊभळै
अभाव री असली पीड़ परखण रा
छिण अणमणा
उर-पलड़ां उतरै।
रे! थांसौ बोझाळ न हरगिर आवखौ
थांसो खारौ न बासंग जैर।
पल पल कलप कल्पना रौ
दीरघ सांस उसांसां
आकळ पिरांण अभासै।
रे! हेत-रतन परखणियां-
हेमहेड़ाऊ,
आज तौ
थारी बाळद रा रुण झुण रव
रग रग रळतळै॥