म्हारै गांव सूं

पांच सौ कोस आंतरै

किणी म्हानै

धोरां माथै

ले जाय'र

ताती रेत में

लिटाय'र

कै दियो होवै

कै देख

कित्ती ठंडी है

जाग्यां।

साच्याणी

म्हानै बा रेत

भोत ठंडी लागै

अर लिट्यो रेवूं

उण माथै सगळै दिन

जाणै माचै माथै

बिछाय दी होवै

किणी नूंईं चादर

पून लागै

मा रो परस।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : अजय कुमार सोनी
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