अेक जूनी सभ्यता रा वारिस आपां

इण नतीजा माथै पूग्या

कै संसार असार है।

अेक सराय है।

अठै आपरो कीं कोनी

साथै कीं कोनी चालै

कांकरा कांकरा भेळा कर म्हैल चुणाया—

अर मूरख इणने आपरौ घर कैवै

तो रैण बसेरो है- रैण बसेरो

पण जद मामूली सो दबाव आयो

आपां नटग्या आपणी जमीन देवण सूं

टाबरां नै पालणौ में पढ़ायो—

इला देणी आपणी...

घर रा ढूंढा सारू कोट कचेड़ी चढ़िया

अर अेक टोडो कै चांतरी कोनी दी

भायां नै

पण अबै जलम ले चुकी है

अेक नूंवी सभ्यता

जिकी धरती नै आपरी कोनी मांनै

कोनी मांनै देस आपरा

सैर, गांव, सगळा बदळता चालै

सींवां सूं आगे बधता चालै

सभ्यता बदळै मोटर हर दूजे बरस

हर तीजै बरस घर

अर आपरो गांव हर पांचवै बरस

घर बदळती बगत कोनी ले जावै।

आपरै साथै।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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