मंथरा रै मूंडै

सुणिया समंचार

राम रै राजतिलक रा कैकयी।

हरखीजती अणमाप

काढ्यौ गळहार

बगसण सारू उणनैं बगसीस में

अर कानां पड़िया

मंथरा रा साव अजोगता बोल-

‘आ हरखीजण री नीं,

रोवण री बेळा है म्हारा राणीसा!’

तौ

अविचळ रैवै कैकयी

पण मंथरा तौ मंथरा बाजै

कैकयी रै नीं सुणियां

चेतावै उणरै मांयली मां नैं

होमती ईंधण ईसकै रौ

अर सिळग जावै लाय

मंथरा इण बळती में पूळौ न्हांखती

चितरावै कैकयी नैं

हाथबसू बै दोय

दसरथ दीन्योड़ा वरदान

बण जावै अजोध्या रा सराप

राम सारू बनवास

अर भरत सारू नांव रौ राजपाट !

बरतीजै अजेस इण गत

मोकळी कुबध।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2017 ,
  • सिरजक : कमल रंगा ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी ,
  • संस्करण : अङतीसवां
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