ऊंट रै गोळ-गोळ मींगणां दांई

म्हारै जीवन रो गाडो

गुड़्यां बगै

अर हूं

नीचां नै सिर कर्‌यां

टांगां स्यूं

गूंगलै दांई

गुड़ाया बगूं

हूं म्हारी रोजी रोटी रै काम मांय

इतरो खोयोड़ो हूं कै—

आज तक हूं

नां ऊगते सूरज नै देख्यो है

अर नां डूबतै चांद नै

नां डूबतै सूरज नै देख्यो है

अर नां ऊगते चांद नै

हूं के जाणूं—

अफगानिस्तान रै झगड़ै नै

अर के जाणूं—

अमरिका’र रूस के चावै

हूं तो अतरो ही जाणू कै—

सारा म्हारै दांई

आप-आपरी रोटी नीचै

खीरा करण मांय लागेड़ा है

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1981 ,
  • सिरजक : ओमप्रकाश पुरोहित ‘कागद’/ ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • संपादक : राजेन्द्र शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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