मनक!

मनक थई नै

मनक नै म्हारै है

हरम नै आवै है?

नाना नै मोटां

भूखा नै तस्यां

आपड़ं नै पारकं

ऊसं नै नैसं

करी-करी नै

लावरा लेतो जाय

लुई पीतो जाय

नै पापना पोटला मातै

पालथी मारी नै

ठाट थकी जीव तौ जाय

एम केम करै है

मनक थई नै

मनक नू पाणी केम उतारै है

हरम ने आवै है?

भाई मारा !

मनक नै ठेट मय मोती हैं

बाण्ने आव्वा दे

चमकवा दे

घणु अन्दारु है दुनिया में

उजवारु

थावा

दे।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : मणि बावरा ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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