ताळ खासा व्हेगी सुणतां

अेवड़ री टोकर्‌यां

मिंदर रा ट्यालिया

झालर

स्यांमी रौ संख

अर देखतां

मारग में उठती खंख

अंधारै में

गूंथीजतौ आभौ

अर आभै री पुड़त में

आंख्यां झपकाता तारा

खांडौ चांद—

सगळा ठैर्‌योड़ा-सा लागै,

डर्‌योड़ा जीव-जिनावर

बगत नै सैन करै—

अेकर तो बता भायला!

कांई व्हैला आगै?

खैर छोडौ—

वौ देखौ बैठौ खेजड़ै पर हाडौ

गाळै में गाडौ

अर रिड़कै तालर में पाडौ...

अँ हँ!

सावळ चाली चूंधिया!

आंख्यां नै उघाड़—

आगै खंदेड़ी-सो खाडौ,

अर खाडौ

जिकौ रोजीना

तर-तर ऊंडौ व्हियां जाय

नीं मिलै पोयोड़ी पोळी

तो बासी खीचड़ौ खाय

दिन भर री बळती लाय—

आवण री उडीक वां री

बिलखता टाबर करै हाय-हाय!

बाबौ छांदड़ी रै ओलै

बैठा लुद्रासी माळा पंपोळै

नीं हंसै नीं बोलै

मन-ई-मन धीजै

कीकर जे बिना धांसी-खंखारै

जी-सोरै

रात नीसर जाय!

बरसां सूं

कांमणगारी रात—

बैरण जोबन रात

रूंध्यां पड़ी है रेगिस्तान नै

भोर भचीड़ा खावै काळा भाखरां में

भूंड रौ ठीकरौ ऊंचायां मिनख

अंधारै में ओला सोधै

गांव रै दोळौ

भाजतौ फिरै अेक भूत

गुवाड़ में गंडक भुस्सै

डरती ठाडी रेत

जिग्यां सूं सिरकण लागै,

दिखणादी आंधी बाजै—

सूंसाड़ा करता रूंख

आपरी जिग्यां छोडै,

घरां में

चाफळ अपड़्यां लोग

नींद रा न्हौरा काढै

रूंखां पर मून पंखेरू

धोरां रै उपरांखर

अगूंणै आभै री कोरां में

भोर रा गेला देखै

अेकल देखै

अेकल देखै...

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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