जद भी व्हां सूं खड्यो

व्हानै देख्या ऊंका

उबाणा पाँव

व्ह हांस्या—

एक-आद जोरसूं खांस्या।

पण-‘ऊ’

न्हं रुक्यो

अर नं झांक्यो

व्हांकी हांसी अर खांसी पै।

बीतग्या अस्यां ई—

दन, मास अर बरस

व्ह हांसता-खांसता र्‌या—

यो चालतो र्‌यो—

उबाणा पाँव।

एक दन वानै कर्‌यो पाछो

जाणबा लेखै ऊँ को जाबो।

देख्या तो पाया—

ऊंका बणाया चतराम

जे बणाया छा ऊँ नै—

उबाणै पगाँ लारै लाई

धूळ का कण-कण सूं।

व्ह पाणी-पाणी हो’र

सूखग्या सरम सूं।

टेरिकाट की स्याफी कै नांई।

स्रोत
  • पोथी : धरती का दो पग ,
  • सिरजक : गोविन्द हाँकला ,
  • प्रकाशक : क्षितिज प्रकाशन (सरस्वती कॉलोनी, कोटी) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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