आव पूरण भोग, तापस त्याग!
कर चुक्यां हां भोग छिण रो, अणत रो म्हैं
रूप रस रो, गंध रो,
मोहित निजर रो, परस, वांणी रो
रतन, धन, संपदा रो
पुरुस नारी रो
गगन, धरती, अगन रो, पवन रो,
इण उदध भर मेघ जळ रो
धापग्या हां
आव पूरण भोग, तापस त्याग
म्हांनै भोग सूं थूं ई उबारै
क्यूं कै ज्यूं-ज्यूं भोग भोग्या
भोग री बधती तिरस रै बारणै
थाकी उमर, थाक्यो बदन,
दो नैण दुखण लागग्या
पग बोझ ई कोनी उठावै
भोग तो परसाद रा परमांण जितरो अब न भावै
म्हैं समझग्या
भुगतणो ई भोग रो फळ होवै जगत में
त्याग रो आणंद भोगां सूं सवायो
त्याग ई है भोग सांचो
आव पूरण भोग तापस त्याग।