ऊँचायाँ गगन की,
नाप ल्ये छै–
तुणगल्यो
जो,
जण-जण की ठोकरां खातो
पड़्यो रै छै-जमीं पै
कद सूँ कद ताईं।
पाणी की एक बूँद
समंदर की गहरायाँ नाप
वणज्या छै मोती
जद, वा
थारो-म्हारो भूल
दे द्ये छै मूळ
दूजाँ के ताई॥