ऊँचायाँ गगन की,

नाप ल्ये छै–

तुणगल्यो

जो,

जण-जण की ठोकरां खातो

पड़्यो रै छै-जमीं पै

कद सूँ कद ताईं।

पाणी की एक बूँद

समंदर की गहरायाँ नाप

वणज्या छै मोती

जद, वा

थारो-म्हारो भूल

दे द्ये छै मूळ

दूजाँ के ताई॥

स्रोत
  • पोथी : थापा थूर ,
  • सिरजक : गौरीशंकर 'कमलेश' ,
  • प्रकाशक : ज्ञान-भारती प्रकाशन, कोटा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै