स्याणा मिनखां

सांची कही-

मन चंचळ

मन चकोर छै

मन दुनियां भर को चोर

मन कै कहन चालियो

यो पल-पल में

बदले छै ठौर!

मन की मुठ्ठी ना बंधै

मन के बंधै ना गांठ

पल में सीमा लांघ ज्या

खाई रोके नीं

परबत की ओट...

मन समझबो

बड़ो कठण छै

अठी चलावै, उठी भागै

जद-जद टोको

कढ ज्यां तन सूं आगै

कसी रीत की

नीं राखै ओट,

फेर बी-

अेकमन के मतै ज्यों

चाल ग्यो

परेम में जावै पूरो डूब

दुःख की छियां नीं पड़ै

सब बंधण सूं जावै छूट!

अेकमन की मुठ्ठी

जिण नै बांध ली

बांधली अेकेश्वर सूं

जिण नै गांठ

बिन ओट कै

ठहर ज्यां

कदी बत सूं

बहार होवै

या सरग की गेल रै

मिनख का

दोनूं लोक

तर जाएं..!

स्रोत
  • सिरजक : मंजू किशोर 'रश्मि' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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