जाणू हूं

इकसार नी रैवै

बगतो बगत

फेर भी देखूं सुपना

विगत पीढयां रौ दरद,

आधी होंवती

केड़ री लाचारी

भोळी मुळक में

बुसबुसांवतां

खुली आंख रा सुपना!

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : नरेंद्र व्यास
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