इण बगत नै बदळनौ पड़सी

वै दिन लदग्या

जद लोग

हवाई घोड़ां माथै

सवारी गांठता हा

कद तलक

मिमियावता रैवैला लोग

बाळता रैवैला

आपणै सरीर रौ रगत

अर कद तलक

जोवता रैवैला मूण्डोट

वां डकरैल गंडकां रौ

बात सगळां नै

अेक दिन समझणी पड़सी

के मुट्ठी भर लोग

हजारां-लाखां लोगां नै

कठां तांईं मूरख बणाबता रैवैला

इण वास्तै

फगत जरूरी है

इण बात नै समझणी

के बगत नै किण तरै

बदळ्यौ जाय सकै।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : क़मर मेवाड़ी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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