टिकटौळी पर बैठ'र
चिरबलाई जद निंबोळी खावण लागी
तो घणखरा कागला आय'र
कांव-कांव करण लाग्या...
बां सोच्यो-
कै जद सगळी निंबोळ्यां
चिरबलाई ई खा जासी
तो आपां रै हाथ
गड़ूका कियां आ'सी!
आ बात जाण'र
चिरबलाई बोली कै-
''अकल का आंधा!
रोजीना दूजै नै खांवतो देख'र ही दुख पास्यो
कै कदै ई खुद रै करमां पर भी भरोसो करस्यो!
जद सूं मैं पैदा हुई
तद सूं ई म्हारै लारै पड़्या हो...
थे आ भूलगा कै
म्हारो तो कोई घर ई कोनी हुवै!
म्हारो तो जलम ई सूवटै कै आळै में हुवै!!
कै जद सुवो
आपका टाबरिया लेकर उड़ ज्यावै
तो म्हारी मा
ऊण सूनै पड़्यै खखोलड़ै में
आपरो आळो बणावै है...
फेर भी आखी उमर म्हैं अर सुवै का टाबर
भाई-भाई के जियां सागै खेलां हां..!
अर अेक थे हो कै जद सूं मैं
खखोलड़ै सूं बारै आयी
अर जमीं पर आ'र पड़ी
तद सूं ही थे म्हारै माथै टूंचां मारण लागगा
मैं दौड़-भाज'र
नीमड़ै की जड़ां में बैठी
थे कांव-कांव करता रैया!
फेर किती मुश्किल सूं
कदै ई चढी अर कदै ई उतरी
उठी, पड़ी
पाछी चढी
पर हारी कोनी!
जियां-कियां कर गुजारो कर्यो
पर मनै धीजो हो
कै हिम्मत राखै तो अेक दिन आदमी
जरूर टिकटौळी पर पूग ज्यावै
अर करमां में लिख्योड़ा फळ
उण बैळ्यां ई लाग्या करै है...
पण थे तो ईं बात नै कदै ई जाणी ई कोनी
फगत दूजां रै माथै ई निजरां टिकायोड़ी राखी
कै कोई कीं खाय नीं लेवै!
बस कांव-कांव करता रैया
जद ई तो आ कुदरत भी थांरै
ख़िलाफ़ हूयगी
बा केवै है ना
कै निंबोळ्यां पाकै
जद कागलां का गळा सूजै॥''