सांभलै म्हारी बात

समझै म्हनै अर

म्हारी बंतळ नै

भरै हुंकारो

बधावै हूंस

बंधावै धीजो

अबखाई मांय थारो सागो

खुसी मांय हरखै म्हारै ज्यूं

सुझावै मारग ठावो

करावै पिछाण चोखै-भूंडे री

म्हारै सूं हालै उतावळो

सगळा कैवै थनै बावळो

पण थूं सै सूं समझणो

म्हारा भोळा निसछळ मन!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : पवन राजपुरोहित ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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