गळियां टेढ़ी-मेढी

अर कित्ती सांकड़ी है

चालणो भौत दोरो है

इणां माथै...

पण वै भी मिनख है

जिका खुद बणावै

से पगडांडी!

वै जठै खड्या हुवै

लैण बठै सूं सरू हुवै...

वां नै लखदाद है!

वां नैं घणा-घणा रंग

जिका जीतै

बार-बार जंग।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : दुष्यन्त जोशी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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