भायला थे आछा साहित्यकार हो!

भरो कौरै कागदां नै

स्याई रो खरच खूब,

विचारा सूं आपणै

पत्थरां में उगाओ दूब।

(आ बिसेसता थां में खूब!)

थे चोखा कलमकार हो!

भ्रिष्टाचार अर अनैतिकता पर

घणो करो घात,

बुराई नै उघाड़’र नागी करो,

करो समाज सुधार री बात।

(स्यात इण वास्तै ईज

मुन्नी बाई रै कोठै मांय पूंच्या थे रात।)

कलम रा धणी थे क्रान्ति रा दूत!

बस में टिकट नी कराई,

अर रेल बाबू री जेब में

सरकायर अेक रुपियो

होळै सी आंख मिचमिचाई।

काल थे कठै पधार्‌या सा,

मंत्री रै सामी गंडकै ज्यूं

दुम कुण हिलार्‌या हा!

(स्यात कोई क्रान्ति री भूमिका बणार्‌या हा!)

भाया थे के करण लागर्‌या हो,

जीवतां क्यूं मरण लागर्‌या हो!

थांरी सान हिमाळै स्यूं ऊंची,

यूं डूबणै री के जंची!

भूलग्या थे दुनिया रा सरदार हो।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : महेन्द्रसिंह महलाण ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै