हरेक सबद मांय खिमता हुवै

कै बो बणै किणी कविता रो मोबी सबद

मौड़ बांध्यां

उण सबद नै लारै चाइजै

लय सांभणिया दूजा सबद...

अदीठ तार सूं बणै माळा,

संभाळां सबद-सबद जुड़ता जावै

जद संभग्या

किणी कविता खातर

थमणो ठीक कोनी

केई दांण खसबू पूगै

नास्यां मांय

पण लाधै कोनी ठिकाणो।

आओ! आपां खुद नै थरप दां

सबद-रूप किणी कविता सारू

मुड़’र देखां कुण है साथै,

अर देख’र दीठाव काठो राखां मन

राखां आस सबद री, सबद आसी भेळा

सबदां सूं मिनख आसी भेळा

बतावणिया बतावै दुनिया नाटक है,

इण मांय जोवां....कविता।

कविता आंख्यां आगै हुयां

सबद रा पगोथियां बणा’र पूगै हिड़दै तांई

हियै राखां ओळी

कै आवांला जद काम किणी सबद-रूप

ना मिलै मोबी रो माण,

पण जठै-कठै हुवांला

किणी ओळी मांय

मुळकणो रैसी हाथ आपां रै।

मिली कविता, का अजेस हांफळा मारो!

पैली विचार कर लो

थे ओळखो तो हो कविता..?

स्रोत
  • पोथी : पाछो कुण आसी ,
  • सिरजक : डॉ.नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : सर्जना प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण