एक दिन

पीय लियौ मारग दारू

डौढौ-बांकी हालतौ

धकड़्यां खावतौ, झूलतौ–झूलतौ पूगग्यो बठै

जठै उणनै हर हाल में पूगणौ नीं हौ

अेकर पूगग्यौ

तौ पछै सैलसाटै कीकर टळतौ

नरक व्हौ के सुरग

कीं व्हौ, हौ जिणनै भुगतणौ हौ

भुगत्यौ

अबै कुण मानेला साच

के भुगत्यां सवायौ व्हेग्यौ उणरौ नसौ

इणीज नसा री पिनक में

झूमतै-झुमतै कह्यौ मारग

म्हैं हूं जित्तै हूं मारग

नीं व्हूंला तो

म्हारी ठौड़ जिकौ कीं व्हैला

वौ मारग इज व्हैला

अर थांनै चालणौ पड़ैला!

स्रोत
  • पोथी : मारग ,
  • सिरजक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : देवल प्रकाशन
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