अरै चिड़कला

बंजर धरती में

काईं चुगै रे थूं?

दरद री बैवाई

फाटगी मन में,

काळजै की जमी में

दरस की तिस को

तावड़ो

जळा'र,

बानी कर रैयो छै

काया सिंगड़ा में

तेल बीतग्यो

जळ री छै बस

मन में आस की बाती

यादां रो हंसो

मार-मार चांच।

हेर रैयो छै

परेम का

छिछला पाणी में

थारी सूरत की-सी

सिपड्यां में

परेम मोती...।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू कुमारी मेघवाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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