मन आंगणियै

मधरो-मधरो

बाजै थारै नेह रो बायरो

इण पुरवाई मांय

झूमतो-गावतो

नित सपनां संजोवतो जीवण

कुचमाद करती

थारी निजरां

लजखावणो हुवतो जीव

झाजो हेत भरतो

तावड़ै छियां ज्यू

थारो म्हारो सागो

अंवेरूं आपणै प्रेम रा

मीठा रसभीना गीत

गावती जावूं मीरां ज्यूं

बण थारी प्रीत।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : पवन राजपुरोहित ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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